एक बौछार था वो ..
एक बौछार था वो शख्स बिना बरसे
किसी अब्रा की सहमी से नमी से जो भिगो देता था ..
एक बौछार ही था वो
जो कभी धुप की अफशां भर के
दूर तक सुनते हुए चेहरों पर छिड़क देता था
नीम तारीक से हॉल में आँखें चमक उठती थीं
सर हिलाता था कभी झूम के टहनी की तरह
लगता था झोंका हवा का था कोई छेड़ गया है ..
गुनगुनाता था तो खुलते हुए बादल की तरह
मुस्कराहट में कई तर्बों की झंकार छुपी थी
गली कासिम से चली एक ग़ज़ल की झंकार था वो
एक आवाज़ की बौछार था वो ...
एक बौछार था वो शख्स बिना बरसे
किसी अब्रा की सहमी से नमी से जो भिगो देता था ..
एक बौछार ही था वो
जो कभी धुप की अफशां भर के
दूर तक सुनते हुए चेहरों पर छिड़क देता था
नीम तारीक से हॉल में आँखें चमक उठती थीं
सर हिलाता था कभी झूम के टहनी की तरह
लगता था झोंका हवा का था कोई छेड़ गया है ..
गुनगुनाता था तो खुलते हुए बादल की तरह
मुस्कराहट में कई तर्बों की झंकार छुपी थी
गली कासिम से चली एक ग़ज़ल की झंकार था वो
एक आवाज़ की बौछार था वो ...